रहस्यमयी जंगल का खजाना
बहुत समय पहले की बात है, हिमालय की ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं के बीच एक छोटा सा गाँव हुआ करता था। इस गाँव का नाम था “अनघ”, और यहाँ के लोग साधारण जीवन जीते थे। लेकिन एक रहस्यमयी कथा इस गाँव में वर्षों से प्रचलित थी। कहा जाता था कि गाँव से दूर, घने और डरावने जंगलों के बीच एक प्राचीन खजाना छुपा हुआ है, जिसे “जंगल का खजाना” कहा जाता था। उस खजाने की रक्षा एक शक्तिशाली जादुई शक्ति करती थी, और कोई भी इंसान जो उस खजाने को पाने की कोशिश करता, वापस कभी नहीं लौटता।
गाँव में एक युवा लड़का था जिसका नाम “आरव” था। आरव स्वभाव से साहसी और निडर था। बचपन से ही उसने अपने दादा-दादी से इस खजाने की कहानी सुनी थी। लेकिन आरव कभी भी इन कहानियों पर पूरी तरह विश्वास नहीं करता था। उसका मानना था कि यह सब सिर्फ डराने के लिए गढ़ी गई बातें हैं। एक दिन उसने ठान लिया कि वह इस रहस्यमयी जंगल में जाएगा और खजाना खोज कर लाएगा।
उसकी माँ ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, “बेटा, वह जंगल बहुत खतरनाक है। वहाँ जाने वाले लोग कभी वापस नहीं आते। यह खजाना सिर्फ एक मिथक है।”
लेकिन आरव ने अपनी माँ की बातों को अनसुना कर दिया। उसने अपने कुछ जरूरी सामान, जैसे पानी, खाना और एक पुरानी तलवार लेकर यात्रा शुरू की। वह जंगल की ओर निकल पड़ा, जहाँ अब तक केवल अंधकार और रहस्य ही थे।
जैसे ही आरव जंगल में प्रवेश करता, उसे महसूस हुआ कि यहाँ का माहौल बेहद अजीब था। पेड़ इतने बड़े और घने थे कि सूरज की रोशनी भी मुश्किल से अंदर आ पाती थी। चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था, बस कभी-कभी अजीब सी आवाजें सुनाई देतीं। पर आरव का हौसला नहीं डगमगाया। उसने जंगल की गहराइयों में जाने का फैसला किया।
कुछ घंटों की यात्रा के बाद, आरव को एक प्राचीन मंदिर के खंडहर दिखाई दिए। यह वही जगह थी जहाँ लोग कहते थे कि खजाना छुपा हुआ है। मंदिर के खंडहरों के पास पहुँचते ही आरव के सामने एक विशाल दरवाजा दिखाई दिया। दरवाजे के ऊपर एक शिलालेख था, जिस पर लिखा था, “जो भी इस दरवाजे को खोलेगा, उसे सबसे पहले अपने दिल की सच्चाई का सामना करना होगा।”
आरव ने बिना सोचे-समझे दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने दरवाजे को छूआ, एक तेज रोशनी फूट पड़ी और एक रहस्यमयी आवाज गूँजने लगी। आवाज ने कहा, “तुम इस खजाने को पाना चाहते हो, लेकिन क्या तुम उसके लिए तैयार हो? तुम्हें तीन परीक्षाएँ देनी होंगी। अगर तुमने ये परीक्षाएँ पार कर लीं, तो खजाना तुम्हारा होगा।”
आरव ने बिना डरे सहमति दी, और पहली परीक्षा शुरू हो गई। अचानक उसके सामने एक विशालकाय शेर प्रकट हुआ। शेर की आँखे अंगारे की तरह जल रही थीं, और वह गर्जना कर रहा था। आरव ने तलवार उठाई और शेर से लड़ने के लिए तैयार हो गया। लेकिन तभी उसे ध्यान आया कि शिलालेख में “दिल की सच्चाई” का जिक्र किया गया था। उसने तलवार नीचे रख दी और शेर की ओर बढ़ा। शेर ने जैसे ही हमला करने की कोशिश की, आरव ने शांतिपूर्वक उसकी आँखों में देखा। शेर कुछ पल के लिए ठिठक गया और फिर शांत होकर गायब हो गया। यह पहली परीक्षा थी—आरव ने समझ लिया था कि यह लड़ाई बल से नहीं, साहस और समझदारी से जीती जा सकती है।
अब दूसरी परीक्षा शुरू हुई। आरव के चारों ओर एक अजीब सा धुंआ फैल गया। उसे अपने आस-पास कुछ दिखना बंद हो गया, और उसकी साँसें तेज हो गईं। उसे लगा कि वह दम घुटने से मर जाएगा। लेकिन फिर उसे अपनी माँ की याद आई, जिसने उसे हमेशा संयम रखने की सलाह दी थी। उसने अपनी घबराहट को काबू में किया और धीरे-धीरे लंबी और गहरी साँसें लेने लगा। कुछ ही क्षणों में धुंआ छँट गया, और आरव ने दूसरी परीक्षा भी पास कर ली।
अब तीसरी और आखिरी परीक्षा बाकी थी। आरव के सामने एक बड़ा कुआँ था, जिसमें नीचे गहरा पानी था। उसे कुएँ में कूद कर खजाना पाना था। कुएँ के ऊपर लिखा था, “जो अपने डर पर काबू पा ले, वही असली विजेता होता है।” आरव को तैरना नहीं आता था, लेकिन उसने अपने डर को नजरअंदाज किया और कुएँ में छलांग लगा दी। जैसे ही वह पानी में कूदा, उसे लगा कि वह डूब जाएगा। लेकिन अचानक पानी की सतह पर एक अद्भुत शक्ति ने उसे ऊपर उठा लिया। यह तीसरी परीक्षा थी—अपने डर से सामना करना।
तीनों परीक्षाएँ पास करने के बाद, आरव के सामने एक चमकता हुआ खजाना प्रकट हुआ। यह सोने-चाँदी या हीरों का खजाना नहीं था, बल्कि ज्ञान और साहस का प्रतीक था। आरव ने खजाने को छुआ, और वह जान गया कि असली खजाना उसकी खुद की शक्ति और विश्वास है।
आरव गाँव लौट आया, और उसने गाँव वालों को बताया कि असली खजाना कोई वस्तु नहीं, बल्कि हमारे अंदर की साहस और सच्चाई है। उसने अपनी कहानी से सबको प्रेरित किया और गाँव के लोग भी उस दिन से जीवन के असली मूल्यों को समझने लगे।
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