बहुत समय पहले की बात है। राजस्थान के एक छोटे से गाँव **रूहगढ़** में एक पुराना किला था। कहते हैं, उस किले में एक जिन का वास था — उसका नाम था **फिरोज़**। फिरोज़ कोई आम जिन नहीं था। वह न तो डराता था, न ही किसी को नुकसान पहुँचाता था। वह बस अकेला था… बेहद अकेला।
वर्षों से वह किले की दीवारों में कैद था। किसी ने उसे बाँधा नहीं था, परंतु उसे संसार से कोई लगाव नहीं रहा था। वह केवल रातों में निकलता, तारों को निहारता और चाँद से बातें करता।
**एक नई रौशनी**
एक दिन गाँव में एक नई लड़की आई — नाम था **रूहिना**। वह शहर से आई थी, परंतु उसके दादा-दादी उसी गाँव में रहते थे। पढ़ाई के बाद छुट्टियाँ बिताने वह आई थी। रूहिना को पुरानी इमारतों, कहानियों और रहस्यों से गहरा लगाव था।
वह हर रोज़ किले के पास जाती, उसकी दीवारों को छूती, उसके इतिहास के बारे में कल्पना करती और अपने डायरी में कुछ न कुछ लिखती।
फिरोज़ पहली बार उसे देखकर चौंक गया। उसकी आत्मा में कुछ हिला। सदियों बाद किसी इंसान की उपस्थिति उसे अच्छी लगी थी।
**अनदेखे संवाद**
रूहिना को कभी एहसास नहीं हुआ कि कोई उसे देख रहा है। लेकिन फिरोज़ हर रात उसे देखता, उसकी डायरी पढ़ता — हाँ, जिनों को पढ़ने की शक्ति होती है।
उसने पढ़ा:
> “कभी-कभी लगता है कोई है, जो इस खंडहर की दीवारों के पीछे छिपा है। पर मैं डरती नहीं, मुझे उसकी मौन उपस्थिति अच्छी लगती है।”
फिरोज़ मुस्कुराया। पहली बार किसी इंसान ने उसे बिना डरे स्वीकार किया था।
**पहला संवाद**
एक दिन रूहिना किले में अकेली थी, अचानक हवा तेज़ चली और उसका डायरी उड़कर गिर गई। जैसे ही वह उठाने दौड़ी, डायरी हवा में रुकी और खुद-ब-खुद उसकी ओर उड़ आई।
रूहिना चौंकी, लेकिन डर के बजाय उसने कहा, “कौन है? अगर कोई आत्मा है, तो तुम्हारा शुक्रिया। मुझे डर नहीं लगता।”
उस रात फिरोज़ पहली बार प्रकट हुआ। वह एक रोशनी के रूप में आया — न धुआँ, न राक्षसी चेहरा — बस हल्की नीली चमक और मधुर आवाज़।
“मैं एक जिन हूँ,” उसने कहा। “पर मैं वैसा नहीं जैसा कहानियों में बताया जाता है। मैं बस… तुम्हें देखता हूँ। तुम मुझे अच्छी लगती हो।”
रूहिना ने धीरे से मुस्कुराया, “अगर तुम सच में जिन हो… तो भी तुम मुझसे इंसानों से ज़्यादा सच्चे लगते हो।”
**प्रेम का आरंभ**
इसके बाद हर रात उनकी मुलाकात होती। रूहिना उसे अपनी कविताएँ सुनाती, और फिरोज़ उसे सैकड़ों साल पुराने रहस्यों और कहानियों के बारे में बताता।
वो दोनों अलग थे — एक इंसान, एक जिन। फिर भी, दिलों की भाषा एक थी। धीरे-धीरे फिरोज़ को एहसास हुआ कि वह रूहिना से प्रेम करने लगा है।
रूहिना भी अब अपनी हर बात उससे कहती। उसका हर दिन अब उसी किले की ओर भागता था।
एक दिन उसने कहा, “क्या तुम्हारे पास भी दिल होता है?”
फिरोज़ बोला, “अगर नहीं होता, तो ये धड़कन क्यों महसूस होती जब तुम मुस्कुराती हो?”
**दुनिया की सच्चाई**
लेकिन हर प्रेम की राह में काँटे होते हैं।
गाँव में एक पुराना तांत्रिक **भैरव बाबा** जान गया कि किले में जिन जाग गया है। उसे शक हुआ कि कोई लड़की उससे संपर्क में है।
भैरव बाबा ने एक रात रूहिना का पीछा किया। उसने देखा कि वह हवा से बात कर रही है। उसने मंत्र पढ़े और फिरोज़ को बाँधने की कोशिश की।
रूहिना चीखी, “नहीं! वह बुरा नहीं है! उसे मत बाँधो!”
लेकिन तांत्रिक ने कहा, “वह एक जिन है! और जिन इंसानों से प्रेम नहीं कर सकते! यह अपवित्र है।”
उसने मंत्रों से एक गोल घेरे में फिरोज़ को कैद कर लिया।
**बलिदान**
फिरोज़ ने रूहिना की आँखों में देखा और कहा, “अगर मेरा प्रेम अपवित्र है, तो मैं मिट जाना पसंद करूँगा। लेकिन तुमसे दूर नहीं जाऊँगा।”
उसने अपनी शक्ति से खुद को मुक्त किया लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ी — उसकी आत्मा नष्ट होने लगी।
जाते-जाते उसने रूहिना से कहा, “मेरे प्रेम की याद रखना। शायद किसी जन्म में फिर मिलें।”
और फिर… वह रोशनी टूटकर आकाश में समा गई।
**समाप्त नहीं हुआ**
वर्षों बीत गए। रूहिना ने गाँव छोड़ दिया लेकिन वह किला, वो रातें, वो जिन — उसकी यादों में हमेशा रहे।
उसने अपने जीवन का हर पल फिरोज़ की याद में कविता लिखने में बिताया।
एक दिन, एक प्रसिद्ध लेखिका की पुस्तक प्रकाशित हुई — नाम था: **”इश्क़ एक जिन का”**।
लोगों ने कहा, “ये तो कहानी जैसी लगती है।”
पर रूहिना जानती थी, यह सिर्फ कहानी नहीं थी… यह उसका जीवन था।